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Know About ... Your Self

हवन- मेरा जीवन   

मेरा जन्म हुआ तो हवन हुआ. पहली बार मेरे केश कटे तो हवन हुआ. मेरा नामकरण हुआ तो हवन हुआ. जन्मदिन पर हवन हुआ, गृह प्रवेश पर हवन हुआ, मेरे व्यवसाय का आरम्भ हुआ तो हवन हुआ, मेरी शादी हुई तो हवन हुआ, बच्चे हुए तो हवन हुआ, संकट आया तो हवन हुआ, खुशियाँ आईं तो हवन हुआ. एक तरह से देखूं तो हर बड़ा काम करने से पहले हवन हुआ. किस लिए? क्योंकि मेरी एक आस्था है कि हवन कर लूँगा तो भगवान साथ होंगे. मैं कहीं भी रहूँगा, भगवान साथ होंगे. कितनी भी कठिन परिस्थिति हों, भगवान मुझे हारने नहीं देंगे. हवन कुंड में डाली गयी एक एक आहुति मेरे जीवन रूपी अग्नि को और विस्तार देगी, उसे ऊंचा उठाएगी.

इस जीवन की अग्नि में सारे पाप जलकर स्वाहा होंगे और मेरे सत्कर्मों की सुगंधि सब दिशाओं में फैलेगी. मैं हार और विफलताओं के सारे बीज इस हवन कुंड की अग्नि में जलाकर भस्म कर डालता हूँ ताकि जीत और सफलता मेरे जीवन के हिस्से हों. इस विश्वास के साथ हवन मेरे जीवन के हर काम में साथ होता है.

हवन- मेरी मुक्ति     

हवन कुंड की आग, उसमें स्वाहा होती आहुतियाँ और आहुति से और प्रचंड होने वाली अग्नि. जीवन का तेज, उसमें डाली गयीं शुभ कर्मों की आहुतियाँ और उनसे और अधिक चमकता जीवन! क्या समानता है! हवन क्या है? अपने जीवन को उजले कर्मों से और चमकाने का संकल्प! अपने सब पाप, छल, विफलता, रोग, झूठ, दुर्भाग्य आदि को इस दिव्य अग्नि में जला डालने का संकल्प! हर नए दिन में एक नयी उड़ान भरने का संकल्प, हर नयी रात में नए सपने देखने का संकल्प! उस ईश्वर रूपी अग्नि में खुद को आहुति बनाके उसका हो जाने का संकल्प, उस दिव्य लौ में अपनी लौ लगाने का संकल्प और इस संसार के दुखों से छूट कर अग्नि के समान ऊपर उठ मुक्त होने का संकल्प! हवन मेरी सफलता का आर्ग है. हवन मेरी मुक्ति का मार्ग है, ईश्वर से मिलाने का मार्ग है. मेरे इस मार्ग को कोई रोक नहीं सकता.

हवन- मेरा भाग्य     

लोग अशुभ से डरते हैं. किसी पर साया है तो किसी पर भूत प्रेत. किसी पर किसी ने जादू कर दिया है तो किसी के ग्रह खराब हैं. किसी का भाग्य साथ नहीं देता तो कोई असफलताओं का मारा है. क्यों? क्योंकि जीवन में संकल्प नहीं है. हवन कुंड के सामने बैठ कर उसकी अग्नि में आहुति डालते हुए इदं न मम कहकर एक बार अपने सब अच्छे बुरे कर्मों को उस ईश्वर को समर्पित कर दो. अपनी जीत हार उस ईश्वर के पल्ले बाँध दो. एक बार पवित्र अग्नि के सामने अपने संकल्प की घोषणा कर दो. एक बार कह दो कि अब हार भी उसकी और जीत भी उसकी, मैंने तो अपना सब उसे सौंप दिया. तुम्हारी हर हार जीत में न बदल जाए तो कहना. हर सुबह हवन की अग्नि में इदं न मम कहकर अपने काम शुरू करना और फिर अगर तुम्हे दुःख हो तो कहना. जिस घर में हवन की अग्नि हर दिन प्रज्ज्वलित होती है वहाँ अशुभ और हार के अँधेरे कभी नहीं टिकते. जिस घर में पवित्र अग्नि विराजमान हो उस घर में विनाश/अनिष्ट कभी नहीं हो सकता.

हवन- मेरा स्वास्थ्य   

आस्था और भक्ति के प्रतीक हवन को करने के विचार मन में आते ही आत्मा में उमड़ने वाला ईश्वर प्रेम वैसा ही है जैसे एक माँ के लिए उसके गर्भस्थ अजन्मे बच्चे के प्रति भाव! न जिसको कभी देखा न सुना, तो भी उसके साथ एक कभी न टूटने वाला रिश्ता बन गया है, यही सोच सोच कर मानसिक आनंद की जो अवस्था एक माँ की होती है वही अवस्था एक भक्त की होती है. इस हवन के माध्यम से वह अपने अजन्मे अदृश्य ईश्वर के प्रति भाव पैदा करता है और उस अवस्था में मानसिक आनंद के चरम को पहुँचता है. इस चरम आनंद के फलस्वरूप मन विकार मुक्त हो जाता है. मस्तिष्क और शरीर में श्रेष्ठ रसों (होर्मोंस) का स्राव होता है जो पुराने रोगों का निदान करता है और नए रोगों को आने नहीं देता. हवन करने वाले के मानसिक रोग दस पांच दिनों से ज्यादा नहीं टिक सकते.

हवन में डाली जाने वाली सामग्री (ध्यान रहे, यह सामग्री आयुर्वेद के अनुसार औषधि आदि गुणों से युक्त जड़ी बूटियों से बनी हो) अग्नि में पड़कर सर्वत्र व्याप्त हो जाती है. घर के हर कोने में फ़ैल कर रोग के कीटाणुओं का विनाश करती है. वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हवन से निकलने वाला धुआँ हवा से फैलने वाली बीमारियों के कारक इन्फेक्शन करने वाले बैक्टीरिया (विषाणु) को नष्ट कर देता है. अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाइए– http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2009-08-17/health/28188655_1_medicinal-herbs-havan-nbri

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में साल भर में होने वाली ५७ मिलियन मौत में से अकेली १५ मिलियन (२५% से ज्यादा) मौत इन्ही इन्फेक्शन फैलाने वाले विषाणुओं से होती हैं! हवन करने से केवल ये बीमारियाँ ही नहीं, और भी बहुत सी बीमारी खत्म होती हैं, जैसे-

१. सर्दी/जुकाम/नजला

२. हर तरह का बुखार

३. मधुमेह (डायबिटीज/शुगर)

४. टीबी (क्षय रोग)

५. हर तरह का सिर दर्द

६. कमजोर हड्डियां

७. निम्न/उच्च रक्तचाप

८. अवसाद (डिप्रेशन)

इन रोगों के साथ साथ विषम रोगों में भी हवन अद्वितीय है, जैसे

९. मूत्र संबंधी रोग

१०. श्वास/खाद्य नली संबंधी रोग

११. स्प्लेनिक अब्सेस

१२. यकृत संबंधी रोग

१३. श्वेत रक्त कोशिका कैंसर

१४. Infections by Enterobacter Aerogenes

१५. Nosocomial Infections

१६. Extrinsic Allergic Alveolitis

१७. nosocomial non-life-threatening infections

और यह सूची अंतहीन है! सौ से भी ज्यादा आम और खास रोग यज्ञ थैरेपी से ठीक होते हैं! सबसे बढ़कर हवन से शरीर, मन, वातावरण, परिस्थितियों और भाग्य पर अद्भुत प्रभाव होता है. घर परिवार, बच्चे बड़े सबके उत्तम स्वास्थ्य, आरोग्य और भाग्य के लिए यज्ञ से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता! दिन अगर यज्ञ से शुरू हो तो कुछ अशुभ हो नहीं सकता, कोई रोग नहीं हो सकता.

हवन- मेरा सबकुछ

यज्ञ/हवन से सम्बंधित कुछ मन्त्रों के भाव सरल शब्दों में कुछ ऐसे हैं

– इस सृष्टि को रच कर जैसे ईश्वर हवन कर रहा है वैसे मैं भी करता हूँ.

– यह यज्ञ धनों का देने वाला है, इसे प्रतिदिन भक्ति से करो, उन्नति करो.

– हर दिन इस पवित्र अग्नि का आधान मेरे संकल्प को बढाता है.

– मैं इस हवन कुंड की अग्नि में अपने पाप और दुःख फूंक डालता हूँ.

– इस अग्नि की ज्वाला के समान सदा ऊपर को उठता हूँ.

– इस अग्नि के समान स्वतन्त्र विचरता हूँ, कोई मुझे बाँध नहीं सकता.

– अग्नि के तेज से मेरा मुखमंडल चमक उठा है, यह दिव्य तेज है.

– हवन कुंड की यह अग्नि मेरी रक्षा करती है.

– यज्ञ की इस अग्नि ने मेरी नसों में जान डाल दी है.

– एक हाथ से यज्ञ करता हूँ, दूसरे से सफलता ग्रहण करता हूँ.

– हवन के ये दिव्य मन्त्र मेरी जीत की घोषणा हैं.

– मेरा जीवन हवन कुंड की अग्नि है, कर्मों की आहुति से इसे और प्रचंड करता हूँ.

– प्रज्ज्वलित हुई हे हवन की अग्नि! तू मोक्ष के मार्ग में पहला पग है.

– यह अग्नि मेरा संकल्प है. हार और दुर्भाग्य इस हवन कुंड में राख बने पड़े हैं.

– हे सर्वत्र फैलती हवन की अग्नि! मेरी प्रसिद्धि का समाचार जन जन तक पहुँचा दे!

– इस हवन की अग्नि को मैंने हृदय में धारण किया है, अब कोई अँधेरा नहीं.

– यज्ञ और अशुभ वैसे ही हैं जैसे प्रकाश और अँधेरा. दोनों एक साथ नहीं रह सकते.

– भाग्य कर्म से बनते हैं और कर्म यज्ञ से. यज्ञ कर और भाग्य चमका ले!

– इस यज्ञ की अग्नि की रगड़ से बुद्धियाँ प्रज्ज्वलित हो उठती हैं.

– यह ऊपर को उठती अग्नि मुझे भी उठाती है.

– हे अग्नि! तू मेरे प्रिय जनों की रक्षा कर!

– हे अग्नि! तू मुझे प्रेम करने वाला साथी दे. शुभ गुणों से युक्त संतान दे!

– हे अग्नि! तू समस्त रोगों को जड़ से काट दे!

– अब यह हवन की अग्नि मेरे सीने में धधकती है, यह कभी नहीं बुझ सकती.

– नया दिन, नयी अग्नि और नयी जीत.

 

यही नहीं, भगवान श्रीराम को रामायण में स्थान स्थान पर ‘यज्ञ करने वाला’ कहा गया है. महाभारत में श्रीकृष्ण सब कुछ छोड़ सकते हैं पर हवन नहीं छोड़ सकते. हस्तिनापुर जाने के लिए अपने रथ पर निकल पड़ते हैं, रास्ते में शाम होती है तो रथ रोक कर हवन करते हैं. अगले दिन कौरवों की राजसभा में हुंकार भरने से पहले अपनी कुटी में हवन करते हैं. अभिमन्यु के बलिदान जैसी भीषण घटना होने पर भी सबको साथ लेकर पहले यज्ञ करते हैं. श्रीकृष्ण के जीवन का एक एक क्षण जैसे आने वाले युगों को यह सन्देश दे रहा था कि चाहे कुछ हो जाए, यज्ञ करना कभी न छोड़ना.

"जिस कर्म को भगवान स्वयं श्रेष्ठतम कर्म कहकर करने का आदेश दें, वो कर्म कर्म नहीं धर्म है. उसका न करना अधर्म है"

 

हे मानवमात्र! हृदय पर हाथ रखकर कहना, क्या दुनिया में कोई दूसरी चीज इन शब्दों का मुकाबला कर सकती है? इस तरह के न जाने कितने चमत्कारी, रोगनाशक, बलवर्धक और जीत के मन्त्रों से यह हवन की प्रक्रिया भरी पड़ी है. जिंदगी की सब समस्याओं का नाश करने वाली और सुखों का अमृत पिलाने वाली यह हवन क्रिया मेरी संस्कृति का हिस्सा है, धर्म का हिस्सा है, आध्यात्म का हिस्सा है, यह सोच कर गर्व से सीना फूल जाता है. हवन मेरे लिए कोई कर्मकांड नहीं है. यह परमेश्वर का आदेश है, श्रीराम की मर्यादा की धरोहर है. श्रीकृष्ण की बंसी की तान है, रण क्षेत्र में पाञ्चजन्य शंख की गुंजार है, अधर्म पर धर्म की जीत की घोषणा है. हवन मेरी जीत का संकल्प है, मेरी जीत की मुहर है. मैं इसे कभी नहीं छोडूंगा.

BPR Trust घोषणा करता है कि अब हम हर घर में हवन करेंगे और करवाएंगे. न जाति का बंधन होगा और न मजहब की बेडियाँ. न रंग न नस्ल न स्त्री पुरुष का भेद. अब हर इंसान हवन करेगा, सुखी होगा!

जो कोई भी व्यक्ति- हिन्दू,  मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, यहूदी, नास्तिक या कोई भी, हवन करना चाहता है, संकल्प करना चाहता है, वह कर सकता है। कोई जाति धर्म- मजहब या लिंग का भेद नहीं है।

 

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